।।वक्त के साथ झड़ते संस्कारों के पत्ते।।

।।वक्त के साथ झड़ते संस्कारों के पत्ते।।

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जिन संस्कारो के बल पर हमारी सुदृढ़ संस्कृति का विकास हुआ,जिन संस्कारों के बल पर हमारी एक अलग पहचान बनी,हमने अपने संस्कारों के बल पर  विश्व के पटल पर एक अलग मुकाम स्थापित किया ।लेकिन वक्त के थपेड़ों ने आज हमारे उन्ही संस्कारो की नींव को हिला के रख दिया है। बदलते वक्त के साथ पाश्चात्य संस्कृतियों को अपना कर हमने अपने संस्कारों की बलि चढ़ा दी। आज अदब और संस्कारों की परिभाषा ही बदल चुकी है, एक वक्त था जब भौर की पहली किरण हमारे संस्कारों के साथ धरती के चरण स्पर्श करती थी,आज वो किरणे अजनबी से हो गयी है,हमारी सुसंस्कारी कुलवधुएं भौर की पहली किणर साथ घर के प्रांगण को अपनी संस्कृति और संस्कारों के बल पर इस तरह सुसज्जित करती थी की स्वयं साक्षात् लक्ष्मी घर में निवास करने को मजबूर हो जाती थी,आज वो प्रांगण तरस जाता है भौर की पहली किरण के साथ उस सुसंस्कृत गृहलक्ष्मी के पदचापों की मधुर ध्वनि सुनने को।
यह हमारे संस्कार ही थे की भौर की पहली किरण के साथ परिवार का हर एक सदस्य "हरे रामा हरे कृष्णा" की करतल ध्वनि के साथ एक साथ खड़ा मिलता था।आज वक्त की आंधी ने हमारे रिश्तों पर गर्द की ऐसी परतें  चढ़ा दी है की हमारे संस्कार धुंधले नज़र आने लगे है।ठाकुर जी भी तरस है उस भाव और श्रद्धा को जो प्रभात की पहली किरण से पहले उनको जगने के लिए मजबूर कर देती थी।
पाश्चात्य संस्कृति का रंग ऐसा चढ़ा की हम  नतमस्तक होना भूल गए उनके लिये जिन्होंने हमारे हमारी ख्वाइस में अनगिनत पीर परमात्माओं की दहलीज पर खुद को अनगिनत बार नतमस्तक हो कर हमारे लिए मन्नतों के धागे बंधे,वो जो हमारे वजूद को जिन्दा रखने के लिए अपने लहू से हमारे वजूद की जड़ों को सिंचित किया ताकि हम प्रफुलित हो सकें।लेकिन बदलते वक्त ने हमारे संस्कारों के साथ साथ हमारे रिश्ते नातों के मायने ही बदल कर रख दियें। यह हमारे पतन की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या है ??
काल्पनिक सुंदरता और सुख सुविधाओं  को ग्रहण करने के फेर में हमने पाश्चत्य संस्कृतियों का जो दूषित और विषैला काल्पनिक आवरण धरण कर लिया है वो लकड़ी में लगे उस कीड़े के समान है जो लकड़ी को अंदर ही अंदर खोखला कर देता है लेकिन संसार को नज़र नहीं आता है।ठीक वैसे ही इस विषैले आवरण ने हमारे संस्कारों को अंदर ही अंदर खोखला कर दिया है लेकिन हमे पता ही नहीं चला।स्थित बड़ी विकट है ,इससे कैसे निपटना है ??यह हमे स्वयं सोचना है।हम अपने खोये हुए संस्कारों पुनः प्रतिस्थापित कैसे करें ??यह सोचना हमे है!!!
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#कुँवर_नादान


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