आखिर क्यों हथियाना चाहता है चाइना गलवान घाटी
दरअसल पूर्व लद्दाख की गलवान घाटी भारत-चीन के बीच सीमा विवाद का अहम केंद्र है। बर्फीली वादियों से घिरी इस घाटी में ही श्योक और गलवान नदियों का मिलन होता है। 1961 में भारतीये सेना ने पहली बार यहां पोस्ट स्थापित की थी। इस घाटी के दोनों तरफ की पहाड़ियां सामरिक ओर रणनीतिक रूप से सेना को महत्वपूर्णता प्रदान करती हैं। गलवान ओर श्योक दोनों नदियां जहां मिलती है,ठीक उसके बगल से भारतीय सेना की एक सड़क गुजरती है। 1962 के युद्ध के बाद से यह घाटी शांत रही है ओर पिछले दो दशकों में यहां दोनों सेनाओं के बीच कोई झड़प भी नहीं हुई थी। मगर 5 मई के बाद, चीनी सेना गलवान घाटी में अपने दावे वाली लाइन से 2 किलोमीटर अंदर तक घुसपैठ कर डाली जो कि भारत द्वारा निर्मित सड़क से मात्र दो किलोमीटर दूर है।
गलवान घाटी में भारत सड़क बना रहा है जिसे रोकने के लिए चीन ने यह हरकत की है।
दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी सड़क का चीन द्वारा विरोध
दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी सड़क इस पूरे इलाके में सामरिक ओर रणनीतिक दोनों माईनो में। भारतीये सेना को बहुत ही अहम साबित होगी। यह सड़क काराकोरम पास के नजदीक तैनात जवानों तक सप्लाई पहुंचाने के लिए बेहद अहम है। भारत और चीन के बीच उच्चस्तरीय बैठकों ओर कई बातचीतों के दौर से बनी सहमति के बाद चीनी सेना गलवान नदी घाटी के पैट्रोलिंग पॉइंट 14, 15 और 17 से पीछे हटने को तैयार हो गयी थी। गलवान घाटी का पूरा इलाका लद्दाख में आता है। यहीं नदी भी बहती है। यहां के विवादित क्षेत्रों में चीनी सेना टेंट लगाती है जिसका विरोध भारत करता है। जानकार कहते हैं कि चीनी सेना द्वारा यहां टेंट लगाने का मकसद दरअसल भारतीय सेना को उकसाना होता है। जानकार कहते हैं कि1962 में भारत-चीन के बीच जो युद्ध हुआ, उस समय भी पहली बार तनाव इसी घाटी से आरंभ हुआ।
दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी सड़क इस पूरे इलाके में सामरिक ओर रणनीतिक दोनों माईनो में। भारतीये सेना को बहुत ही अहम साबित होगी। यह सड़क काराकोरम पास के नजदीक तैनात जवानों तक सप्लाई पहुंचाने के लिए बेहद अहम है। भारत और चीन के बीच उच्चस्तरीय बैठकों ओर कई बातचीतों के दौर से बनी सहमति के बाद चीनी सेना गलवान नदी घाटी के पैट्रोलिंग पॉइंट 14, 15 और 17 से पीछे हटने को तैयार हो गयी थी। गलवान घाटी का पूरा इलाका लद्दाख में आता है। यहीं नदी भी बहती है। यहां के विवादित क्षेत्रों में चीनी सेना टेंट लगाती है जिसका विरोध भारत करता है। जानकार कहते हैं कि चीनी सेना द्वारा यहां टेंट लगाने का मकसद दरअसल भारतीय सेना को उकसाना होता है। जानकार कहते हैं कि1962 में भारत-चीन के बीच जो युद्ध हुआ, उस समय भी पहली बार तनाव इसी घाटी से आरंभ हुआ।
आखिर क्यों प्रतिबंधित इस इलाके में हथियारों का प्रयोग
साल 1996 में हुए समझौते के आर्टिकल VI के तहत वास्तविक नियंत्रण रेखा से दो किलोमीटर के भीतर न तो कोई पक्ष आग लगाएगा, न ही बायो-डिग्रेडेशन पैदा करेगा, न, खतरनाक रसायनों का उपयोग करेगा, न ही किसी प्रकार से बंदूकों और विस्फोटकों की मदद से ब्लास्ट करेगा। यह पांबदी, नियमित तौर पर होने वाली फायरिंग एक्टिविटीज पर नहीं होगी। इस समझौते में कहा गया है कि अगर एलएसी पर दोनों पक्षों के सैनिक किसी मतभेद के चलते आमने-सामने आते हैं तो उन्हें आत्म-संयम बरतना होगा और तनाव को कम करने के कदम उठाने होंगे। दोनों देश स्थिति की समीक्षा करने और तनाव को बढ़ाने से रोकने के लिए राजनयिक या दूसरे उपलब्ध चैनलों के जरिए वार्ता करेंगे या बाकी उपाय अपनाएंगे। यही कारण था कि 15 जून को गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुए खूनी संघर्ष में एक भी गोली चले बिना दोनों तरफ के लगभग 60 से 70 सैनिक हताहत हो गये।
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