मुगल सेना में महाराजा मान सिंह का खोफ:-
जैसे कि मलेछों की नीति रही थी की जिधर से भी गुजरे लूटपाट, दहशत ओर अराजकता पैदा कर के निकलते थे, ताकि लोगों के दिलों में सदा सदा के लिए उनका खोफ कायम हो जाये।हल्दीघाटी के भीषण संग्राम में महाराणा प्रताप ओर चेतक के घायल हो जाने पर झाला मान, रामसा तोमर एवम अन्य सहयोगियों के कहने पर महाराणा प्रताप को युद्ध भूमि से निकलना पड़ा ओर युद्ध का परिणाम शाही सेना के पक्ष में गया,इधर युद्ध समाप्ति के बाद शाही सेना के प्रधान सेनापति महाराजा मानसिंह जी द्वारा यह ऐलान किया गया था की चितौड़ नगर के घरों मे अगर कोई लूटपाट करता देखा गया तो उसी वक्त उसका सिर कलम कर दिया जायेगा।सैनिकों में मानसिंह का खोफ इतना ज्यादा था कि उनकी आज्ञा की अहवेलना कोई नही कर सकता था।अतः चितौड़ दुर्ग के अलावा कहीं कोई लूटपाट नही की गयी।चितौड़ का आमजन ओर उनके घर युद्ध के बाद भी सुरक्षित रहे।
भय के कारण निष्कासन की बजाय बंगाल स्थान्तरण:-
सर्वविदित है कि जब अकबर को इस बात का पता चला तो उसने मानसिंह को कुछ दिनों के लिए दरबार से निष्कासित कर दिया था।वैसे गौर करने वाली बात यह भी है कि अगर राजा मानसिंह की जगह कोई और होता तो क्या उसके लिए भी इतनी आसान सजा होती, शाही हुकुम की नाफरमानी के जुर्म में उसी वक्त उसका सिर कलम करवा दिया जाता । लेकिन सच तो यह था कि बादशाह को भी मानसिंह की शक्तियो का अच्छी तरह से भान था। राजा मानसिंह के आत्मघाती हरावल में बीस हजार राजपूतों की एक ऐसी टुकड़ी थी,जो राजा मानसिंह के कहने पर क्षण भर में दुश्मन के सिर काटकर उनके कदमों में डाल सकती थी और वक्त पड़े उनके लिए अपने सिर कटवाने में भी पीछे नही हटती थी।इसी दस्ते की बदौलत मानसिंह ने बड़े बड़े युद्ध जीते थे।यह वही आत्मघाती दस्ता था जिसका नेतृत्व करते हुऐ अफगानिस्तान में मलेछों को काट काट कर मानसिंह जी ने उनके रक्त से अफगानी धरती को लाल कर दिया था।अगर मैं यह कहूँ तो अतिशयोक्ति नही होगी कि शारीरिक रूप से भले ही महाराजा मानसिंह जी दिल्ली दरबार मे थे लेकिन एक सत्य यह भी है कि महाराजा मानसिंह की वीरता और उनकी शक्तियों के भय के कारण अकबर पूर्ण रूप से महाराजा मानसिंह जी गुलाम बन चुका था।इसी भय का परिणाम था कि खुर्रम के साथ सल्तनत के खिलाफ अंदरूनी साजिश में शामिल होने का पता लगने के बावजुद भी अकबर ने महाराजा मानसिंह को कोई कठोर सजा ना देते हुए उनको सिर्फ दिल्ली से हटा कर बंगाल भेज दिया गया जबकि खुर्रम को कैद कर कालकोठरी में डाल दिया गया था।इन सब बातों से एक बात यह साफ जाती है कि अकबर के मन ओर मस्तिष्क पर महाराजा मानसिंह का खोफ इस कदर हावी था कि चाह कर भी वो महाराजा मानसिंह के खिलाफ जा नही सकता था!इसलिए आप से अनुरोध है कि इस छूपी हुई ऐतिहासिक सचाई को ज्यादा से ज्यादा शेयर करो ताकि लोगों को भी पता लग सके की अकबर महान नही बल्कि एक डरपोक किस्म का इंसान था। जिसे मानसिंह के भय और खोफ ने उसको मानशिक रूप से महाराज मानसिंह का गुलाम बना दिया था।
कुंवर नरपतसिंह पिपराली
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