।।सियासतों के सौदागर और आनंदपाल।

पिछले दो दिनों मे जिस तरह घटनाक्रम घटित हुए है सियासत और सामाजिक गलियारों में एक अजीब सी हलचल पैदा कर दी है।वैसे देखा जाए तो अपराध् और सियासत का चोली दामन का साथ रहा है और यह दोनों की एक दूसरे के बिना अधूरे है।अपने सियासती वर्जश्व को  कायम रखने के लिए सियासत हमेशा अपराध् और अपराधी को सरक्षण प्रदान करता आया है,जबकि अपराधी अपने वर्जश्व को कायम रखने के लिए सियासतों का सहारा लेते आयें है।और इसी संरक्षण और  सहारे की ईंटों और गारे से बनती है राजदारी की वो इमारत जिसमे सौदे होते है सियासत और सहारों के।और इन सब में अहम भूमिका निभाती है हमारे लचर न्यायपालिकाओं  की दभा और धाराएं।यह राजदारी और रंगदारी की काली दुनिया अफ्रीका के उन काले घने जंगलों की तरह है जहां हर एक जीव जहरीला और भक्षक होता है।जहाँ अपने आप को जीवित रखना है तो दूसरे का शिकार करना जरूरी है,यहां  ना नियम है ना कायदे बस खुद को जीवित रखना है तो स्वयं को श्रेष्ठ साबित करना ही होगा। जाहिर सी बात है की जब स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने की बात आती है वहां प्रतिस्प्रधा निश्चित है और इसी प्रतिस्प्रधा से उद्भव होता है राजदारी पर रंगदारी उन सौदागरों का जो सियासत में मोहरों की तरह स्तेमाल किये जाते है।और फिर शुरू होता है सियासत और सौदागरी का वो खेल जहां बेरोजगारी,बेकारी और मजबूरी बनते है इस खेल में स्तेमाल होने वाले प्यादे।जिन्हें जब चाहे जैसे चाहें स्तेमाल करते है इस सियासत के वजीर।इस पुरे खेल में कई बार प्यादे को भी वजीर बनते देखा लेकिन ऐसे प्यादों की उम्र का अंदाज लगाना बड़ा ही मुश्किल होता है।क्यों की सियासत और अपराध् की दुनिया वो दलदल जहां ऐसे अजगरों की भरमार  है जो अपने शिकार को अपनी पकड़ में कब कस ले यह तो खुद शिकार भी नहीं जान पाता और जब तक जान पाता तक वो जकड़ा जा चूका होता है।यह वो दलदल है जिसमे उतरना तो बेहद आसान है लेकिन जिन्दा वापस  निकलने नामुमकिन सा है।यह वो दुनिया है जहां कौन सा राजदार कब,कैसे और कहाँ दफन होना है और अगली चाल क्या होगी यह वक्त तय करता है ।हम विश्लेषण करें तो पातें है की
बिकती है मजबूरियां,यहां दौलत के मयखानों में।
दफन होते है राज कई,सियासत के मकानों में।।
रोज बिछती है सियासत की शतरंज यहाँ पे।
बेकारी के प्यादे मिलते,अठन्नी और दो आनो में।।
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कुँवर नादान

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