मर कर कौम को जिन्दा कर गया आनंदपाल

जब जिन्दा था प्रशासन उसके नाम से कांपता था जिधर  से उसके गुजरने की आहट तक होती,हाथों में हथियार होते हुए भी,एनकाउंटर स्पेसलिस्टों की पिंडियां कांपने लग जाती थी पर अब जब वो नहीं रहा तो भी प्रशासन की नींद हराम है। आखिर ऐसा क्या था उसमे जिसने जीते जी जुर्म की बादशाहत की लेकिन  उसके चले जाने  के बाद आज उसके घर पर उसके लिए हर दिन हजारों का हुजूम उमड़ रहा है।उसके फैन्स फॉलोविंग और उसके प्रति समाज की सहानुभूति को देख अब शासन को भी डर सताने लग गया  है अपने उस वोट बैंक को खोने का जिसको हक़ से  सीना ठोक कर अपना बताने में हिचक नहीं करता था। और यह वोट बैंक भी कटप्पा की तरह दशकों से उस तख्त के प्रति अपनी वफादारी और प्रतिष्ठा को ऊँचा रखने के लिए अपने हक़ हुकूक की प्राचीर को भी धराशाही करने ने जरा सी भी गुरेज नहीं की।लेकिन अब आनंदपाल नाम की एक चिंगारी ने दशकों से वफ़ादारी के प्रति मक्कार सियासती चलों की  चिलमन को पल भर में जला कर खाक कर दिया जिससे हर मक्कार चेहरे अब साफ नज़र आने लग गए है। जिसने जिन्दा रहकर कभी कौम का भला नहीं किया वो मरते मरते दशकों से कौम के स्वाभिमान  के पैरों में पड़ी वफ़ादारी की गुलाम बेड़ियों को बगावत की मशाल थमा कर  अपने स्वाभिमान को जाग्रत करने का एक रास्ता दिखा गया। अब तख्त की उन गुलाम बेड़िया के टूटने की आवाज सुदूर तक सुनाई पड़ रही है। जो बेड़िया अभी तख्तो ताज के हुकुमरानों हुकुम पर कभी खनकती थी और हुकुम के साथ ही खामोश हो जाती थी आज वो बगावत पर उत्तर आयी है।और इस बगावत या यूँ कहें बदलाव का  सूत्रपात  फिर से बना है अपराध जगता का कोई बाल्मीकि जो जीवन की मुख्यधारा मे शामिल होकर जीवन की आधुनिक रामायण की रचना करना  चाहता था लेकिन सियासत के रावण और कुम्भकर्ण इस बार भारी पड़ गए लेकिन मरते मरते भी वो बगावत की ऐसी चौपाइयों की रचना कर गया जिनका अनुवादिकरण होते ही हुकुमत और हुकूमत के  कई हुकुमरानो की कुंडलियाँ बदलनी निश्चत है। इतिहास गवाह है की जब भी कोई गुलाम बग़ावत पर उतरता है तो बड़े बड़े सिरों के ताज को ठोकरों में पड़ा देखा है और यहां तो एक पूरी की पूरी कौम बग़ावत और बदलाव की बयार से गुजर रही है। हुकरानों की नींदें हराम हो चुकी है क्यों अब AK-47  ब्रह्मशत्र  में बदल चुकी है जो अपने लक्ष्य भेद कर ही शांत होगा । वो जिन्दा सियासत और प्रशासन के गले की फ़ांस था लेकिन मरकर  बम्बू  बनकर सियासत के गलियारों के लिए और भी खतरनाक हो गया
कुँवर नादान

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