श्री यदुकुल चंद्रभाल महाराजा श्री भौम पाल जी देव बहादुर ,
करौली की गद्दी पर 21 अगस्त 1927 को विराजमान हुए थे , यह श्री कृष्ण की 178 वीं पीढ़ी में आते थे ।
करौली की गद्दी पर बैठने से पहले से ही यह करौली की जानता के प्रिय थे , करौली में बेगार प्रथा को खत्म करने से लेकर करौली में दूरस्थ स्थानों तक लोगो की समस्याओं को सुनना और उनका निराकरण करने के लिए हमेशा सजग रहते थ|
इनका जीवन बहुत सौम्य और पवित्र रहा था ,
यह एक तपस्वी का जीवन जीते थे , उन्होंने अपने जीवन को करौली कि जनता के कल्याण और करौली के विकास में लगा दिया था , इन्होंने जनकल्याण के लिए अनेक कार्य किए जिनमें
करौली और कैलादेवी में बिजली घर स्थापित करवाने , कैलादेवी में कालिसिल बांध बनवाने और सपोटरा के गोठरा गांव में भौम सागर बांध का निर्माण शामिल था , इन्होंने कैलादेवी में एक सुव्यवस्थित बाज़ार का निर्माण भी करवाया , जिससे करौली के आम जन को अपने लघु उद्योग के लिए उचित जगह मिल सके , इन्होंने करौली और कैलादेवी में आम जन और कैलादेवी के यात्रियों के लिए कई सारे कुएं और धर्मशालाओं का निर्माण करवाया , साथ ही कैलादेवी की बड़ी धर्मशाला का भी निर्माण पूर्ण करवाया था ,
इन्होंने करौली में शिक्षा के प्रसार के लिए करौली में हाई स्कूल का निर्माण करवाया था , जिसमे अभी करौली डाइट का कार्यालय और वर्तमान हाई सेकेंडरी स्कूल गतिमान है ,
इन्होंने करौली में चिकित्सा सुविधाओं के लिए करौली में काफी जगह डिस्पेंसरी खुलवाई एवम् वर्तमान करौली अस्पताल की स्थापना की थी , और जयपुर के एसएमएस अस्पताल के लिए भी एक बड़ी राशि का दान दिया था ।
इनके समय करौली में हैजा महामारी बहुत विकट तौर पर फैली थी , पर इन्होंने उसे एक व्यवस्थित रिकॉर्ड कीपिंग और सेनेटाइज्शन प्रक्रिया के माध्यम से उसपर काबू पाया था , जिसकी उस समय अन्य राजवंशों और ब्रटीश सरकार ने बहुत प्रशंसा की।
महाराजा भौम पाल जी अपनी बुजुर्ग अवस्था के बावजूद, उन्होंने राज्य के पूरे क्षेत्र को व्यक्तिगत रूप से जमीनी स्तर पर स्थितियों को देखा और समझा था ।
वह यह सुनिश्चित करते थे कि उनकी प्रजा की क्या समस्या थी और उन्हें कैसे खत्म करना है । इस उद्देश्य के लिए वे वार्षिक शिविर या यात्रा अदालतें आयोजित किया करते थे जिसमें वह राज्य के विभिन्न हिस्सों का दौरा किया करते थे और प्रत्येक क्षेत्र में कुछ समय व्यतीत कर लोगों से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात करते, उनके मुद्दों के बारे में पूछताछ करते, प्रशासनिक और राजस्व मामलों पर चर्चा करते, न्याय के विषयों पर निर्णय लेते और निर्माण कार्यों को मंजूरी देते थे ।
यदुवंशी राज्य करौली की यह तस्वीरें हमें उन्हीं समय काल को दर्शाती है ।
चैत्र नवरात्रि के दौरान पहला शिविर कैलादेवी मंदिर के पास एक मैदान से शुरू होता था । अष्टमी पूजन के पश्चात महाराजा भोम पाल अपने अनुचरों और प्रशासनिक अधिकारी के साथ बरसावां माता के प्राचीन मंदिर में जाते थे, रास्ते में सभी गाँवों का दौरा करते थे और वहाँ से हाड़ौती जाते थे और अपने जागीरदारों से मुलाकात करते थे व 15 दिनों के लिए वही अपना दरबार लगाते थे ।
कुछ महीनों के बाद वे भरी गरमी में करनपुर की में अपना दरबार स्थापित करते थे ताकि डांग के दूरस्थ गाँवों तक भी सहायता पहुँचे। सरदी के माह में मासलपुर तेहसिल में शिविर पर पधारते थे।
इनके अलावा भी वह अन्य बहुत से जन कल्याण के कार्यों में लिप्त रहते थे , करौली से बेगार प्रथा का अंत भी इन्होंने ही किया था ।
अपने अंतिम समय तक यह करौली कि जनता और उनके विकास के लिए हमेशा तत्पर रहते थे ।
करौली की गद्दी पर 21 अगस्त 1927 को विराजमान हुए थे , यह श्री कृष्ण की 178 वीं पीढ़ी में आते थे ।
करौली की गद्दी पर बैठने से पहले से ही यह करौली की जानता के प्रिय थे , करौली में बेगार प्रथा को खत्म करने से लेकर करौली में दूरस्थ स्थानों तक लोगो की समस्याओं को सुनना और उनका निराकरण करने के लिए हमेशा सजग रहते थ|
इनका जीवन बहुत सौम्य और पवित्र रहा था ,
यह एक तपस्वी का जीवन जीते थे , उन्होंने अपने जीवन को करौली कि जनता के कल्याण और करौली के विकास में लगा दिया था , इन्होंने जनकल्याण के लिए अनेक कार्य किए जिनमें
करौली और कैलादेवी में बिजली घर स्थापित करवाने , कैलादेवी में कालिसिल बांध बनवाने और सपोटरा के गोठरा गांव में भौम सागर बांध का निर्माण शामिल था , इन्होंने कैलादेवी में एक सुव्यवस्थित बाज़ार का निर्माण भी करवाया , जिससे करौली के आम जन को अपने लघु उद्योग के लिए उचित जगह मिल सके , इन्होंने करौली और कैलादेवी में आम जन और कैलादेवी के यात्रियों के लिए कई सारे कुएं और धर्मशालाओं का निर्माण करवाया , साथ ही कैलादेवी की बड़ी धर्मशाला का भी निर्माण पूर्ण करवाया था ,
इन्होंने करौली में शिक्षा के प्रसार के लिए करौली में हाई स्कूल का निर्माण करवाया था , जिसमे अभी करौली डाइट का कार्यालय और वर्तमान हाई सेकेंडरी स्कूल गतिमान है ,
इन्होंने करौली में चिकित्सा सुविधाओं के लिए करौली में काफी जगह डिस्पेंसरी खुलवाई एवम् वर्तमान करौली अस्पताल की स्थापना की थी , और जयपुर के एसएमएस अस्पताल के लिए भी एक बड़ी राशि का दान दिया था ।
इनके समय करौली में हैजा महामारी बहुत विकट तौर पर फैली थी , पर इन्होंने उसे एक व्यवस्थित रिकॉर्ड कीपिंग और सेनेटाइज्शन प्रक्रिया के माध्यम से उसपर काबू पाया था , जिसकी उस समय अन्य राजवंशों और ब्रटीश सरकार ने बहुत प्रशंसा की।
महाराजा भौम पाल जी अपनी बुजुर्ग अवस्था के बावजूद, उन्होंने राज्य के पूरे क्षेत्र को व्यक्तिगत रूप से जमीनी स्तर पर स्थितियों को देखा और समझा था ।
वह यह सुनिश्चित करते थे कि उनकी प्रजा की क्या समस्या थी और उन्हें कैसे खत्म करना है । इस उद्देश्य के लिए वे वार्षिक शिविर या यात्रा अदालतें आयोजित किया करते थे जिसमें वह राज्य के विभिन्न हिस्सों का दौरा किया करते थे और प्रत्येक क्षेत्र में कुछ समय व्यतीत कर लोगों से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात करते, उनके मुद्दों के बारे में पूछताछ करते, प्रशासनिक और राजस्व मामलों पर चर्चा करते, न्याय के विषयों पर निर्णय लेते और निर्माण कार्यों को मंजूरी देते थे ।
यदुवंशी राज्य करौली की यह तस्वीरें हमें उन्हीं समय काल को दर्शाती है ।
चैत्र नवरात्रि के दौरान पहला शिविर कैलादेवी मंदिर के पास एक मैदान से शुरू होता था । अष्टमी पूजन के पश्चात महाराजा भोम पाल अपने अनुचरों और प्रशासनिक अधिकारी के साथ बरसावां माता के प्राचीन मंदिर में जाते थे, रास्ते में सभी गाँवों का दौरा करते थे और वहाँ से हाड़ौती जाते थे और अपने जागीरदारों से मुलाकात करते थे व 15 दिनों के लिए वही अपना दरबार लगाते थे ।
कुछ महीनों के बाद वे भरी गरमी में करनपुर की में अपना दरबार स्थापित करते थे ताकि डांग के दूरस्थ गाँवों तक भी सहायता पहुँचे। सरदी के माह में मासलपुर तेहसिल में शिविर पर पधारते थे।
इनके अलावा भी वह अन्य बहुत से जन कल्याण के कार्यों में लिप्त रहते थे , करौली से बेगार प्रथा का अंत भी इन्होंने ही किया था ।
अपने अंतिम समय तक यह करौली कि जनता और उनके विकास के लिए हमेशा तत्पर रहते थे ।
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