राजस्थान का जलियांवाला बाग अलवर का नीमूचाना


राजस्थान का  जलियांवाला बाग अलवर का नीमूचाना नरसंहार


जलियांवाला नरसंहार जिसमें लगभग ढाई सौ लोगो की मौत हुई थी उसके बाद भारत के इतिहास का सबसे बड़ा नरसंहार हुआ था नीमूचाना में। महात्मा गांधी ने इसे जलियांवाला हत्याकांड से भी ज्यादा विभत्स बताया था। भारत के इतिहास में किसी भी किसान आंदोलन में इतने लोग नही मरे जितने नीमूचाना में एक दिन में मारे गए। सरकारी रिकॉर्ड अनुसार 156 की मौत हुई थी जबकि गैर सरकारी आंकड़े 1500 तक के मरने की बात करते हैं। इसके बावजूद अगर आप इंटरनेट पर सर्च करेंगे तो इस कांड के बारे में कोई खास जानकारी आपको नही मिल पाएगी। विकिपीडिया पर भारत मे हुए नरसंहारों की लिस्ट देखोगे तो उसमे भी इस कांड का कोई जिक्र नही मिलेगा। यहां तक कि भारत के किसान आंदोलनों या स्वाधीनता आंदोलन का इतिहास भी आप पढ़ेंगे तो उसमे मुश्किल ही नीमूचाना नरसंहार का जिक्र आपको मिलेगा।
यहां तक कि राजस्थान के किसान आंदोलनों या रियासत विरोधी/स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास में भी इस कांड को पर्याप्त महत्व नही दिया जाता। राजस्थान में दर्जनों कृत्रिम किसान आंदोलनो को भी 47 के बाद से पब्लिक डिस्कोर्स में प्रसिद्धि मिली हुई है जिनमे जान माल की मामूली हानि हुई थी। उनके स्मारक बने हुए हैं, वर्षगांठ मनाई जाती हैं, इन आंदोलनों के नेता प्रसिद्धि पाकर मंत्री मुख्यमंत्री तक बने लेकिन इन सभी किसान आंदोलनों को मिलाकर भी उतनी जनहानि नहीं हुई जितनी अकेले नीमूचाना नरसंहार में हुई लेकिन इस नरसंहार के शहीदों को ना तो कोई याद करता है और ना ही कोई स्मारक है। यहां तक कि स्थानीय लोग भी इस कांड के बारे में बेहद कम जानकारी रखते हैं।


नीमूचाना नरसंहार कांड को महत्व ना दिए जाने के पीछे सबसे बड़ा कारण


नीमूचाना नरसंहार कांड को महत्व ना दिए जाने के पीछे सबसे बड़ा कारण इस हत्याकांड में शहीद किसानों का राजपूत जाति से होना है। स्वतंत्रता के बाद के राजस्थान में सत्ता प्राप्त नए शासक वर्ग का मुख्य ध्येय अपनी सत्ता को न्यायोचित ठहराने के लिए समाज मे राजपूतो की छवि के विरुद्ध दुष्प्रचार करना था। नीमूचाना कांड का उदघाटन इस नैरेटिव की राह में रोड़ा था। शहरी नव मध्यम वर्ग द्वारा राजपूतो के विरोध में ग्रामीण किसान जातियों को अपना पिछलग्गू बनाने के लिए संपूर्ण राजपूत समाज को किसानों का शोषक साबित करना जरूरी था। इस वजह से राजस्थान के सरकारी प्रकाशनों में भी इस हत्याकांड को सिर्फ चार लाइन में सीमित कर दिया जाता है। इसलिए खुद अलवर जिले का राजपूत समाज का व्यक्ति भी सिर्फ इतना जानता है कि कोई मामूली किसान आंदोलन था। लेकिन इस नरसंहार को महत्व ना मिलने के पीछे सबसे बड़ा कारण खुद राजपूत समाज की उदासीनता है क्योंकि स्थानीय राजपूत समाज मे इतिहास बोध ना के बराबर है और ना ही कोई राजनीतिक चेतना है। ऊपर से रियासतों के प्रति वफादारी ज्यादा महत्वपूर्ण मानी जाती है जबकि अंग्रेजी शासन में राज प्रमुखों की आम राजपूतो पर निर्भरता खत्म होने के बाद ही राज प्रमुखों का आम राजपूतो से संबंध लगभग खत्म हो गया था।
भारतीय संस्कृति मंत्रालय तथा भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद(ICHR) द्वारा संयुक्त रूप से हाल ही में स्वतंत्रता सेनानियों के नामो की डिक्शनरी बनवाए जाने के क्रम में इस नरसंहार के बारे मे कुछ जानकारी मिल पाई है। इस प्रोजेक्ट पर काम करने वाले शोधकर्ताओं को शोध करते वक्त जब इस नरसंहार का पता चला तो वो खुद हैरान रह गए कि इतने वरिष्ठ इतिहासकार होने के बावजूद इतने बड़े हत्याकांड से वो खुद अंजान थे। इस प्रोजेक्ट में उन्होंने नीमूचाना कांड के शहीदों की सूची बनाने के लिए विशेष परिश्रम किया है। जबकि बहुत से ऐसे नाम जो पहले सेनानियों की सूचियों में शामिल थे लेकिन असल मे लूट मार करने वाले थे, उन्हें इस प्रोजेक्ट द्वारा स्वाधीनता सेनानियों की सूची में शामिल नही किया गया है। इससे इस कांड की सत्यता और गंभीरता साबित होती है।


इस आंदोलन और हत्याकांड का संक्षेप में वर्णन इस प्रकार-

अलवर रियासत क्योंकि अंग्रेजो के आगमन के कुछ समय पूर्व ही अस्तित्व में आई थी इसलिए वहां राजपूत जागीरदारों की संख्या अभी कम ही थी और जागीर भी बेहद छोटी थीं। 80% भूमि खालसा में थी। इस खालसा में बिसवेदार भी थे। बिसवेदार वो किसान होते थे जो खालसा में आते थे लेकिन उनको अपनी जमीन पर स्थायी मालिकाना हक मिला होता था। उन्हें कर ना चुकाने पर ही बेदखल किया जा सकता था। बिसवेदारो में ज्यादातर राजपूत थे जिन्हें सैनिक सेवा के बदले अलवर दरबार ने बिसवेदारी दीं थी। अंग्रेजो के अधीन होने के बाद राजपूत जागीरदारों और बिसेदारो पर दरबार की निर्भरता खत्म होने से दरबार और आम राजपूतो के संबंध और शिथिल हो गए।
1923-24 के नए भूमि बंदोबस्त में अलवर राज्य ने राजपूत किसानों के बिसवेदारी अधिकार जब्त कर लिये और कर की दरें बढ़ाकर 50% तक कर दी। यह अलवर दरबार द्वारा राजपूतो के साथ धोखा था जबकि रियासत को अब भी राजपूतो को अनिवार्य सैन्य सेवा में बुलाने का अधिकार था। राजपूतो को अनिवार्य सैन्य सेवा के कारण रियायतें दी जाती थीं। उन्हें अपना सामाजिक स्तर भी बनाए रखना होता था। ब्राह्मणो को भी रियायतें दी जाती थीं लेकिन राज्य को उनसे कोई सेवा नही मिलती थी।
राज्य की इस व्यवस्था के विरुद्ध थानागाजी और बानसूर तहसील के राजपूत बिसवेदारो ने इकट्ठे होकर नई दरों पर कर नही देने और इसके विरुद्ध आंदोलन करने का निर्णय लिया। दबाव बनाने के लिए अक्टूबर 1924 में राजपूतो ने विभिन्न गांवों में बैठके की लेकिन इसका राज पर कोई असर नही हुआ।
इसके बाद आंदोलन के नेताओ ने रियासत के बाहर के राजपूतो का समर्थन जुटाने का निर्णय लिया। देशभर के राजपूतो से अपील की गईं। जनवरी 1925 में दिल्ली में अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के अधिवेशन में अलवर से 200 राजपूत शामिल हुए। इन्होंने वहां अपनी व्यथा सुनाई और आंदोलन को समर्थन की अपील की। इन्हें अधिवेशन में सहानुभूति मिली और आंदोलन को जारी रखने के लिए प्रोत्साहन मिला।
इसके बाद यह आंदोलन तीव्र हो गया। गवर्नर जनरल के एजेंट को फरियाद की गई। लेकिन राज को कोई फर्क नही पड़ा। कर ना देने पर सरकार ने फसल जब्त कर लीं जिसे राजपूतो ने ताकत के बल छुड़ा लिया। अब राज सरकार द्वारा प्रतिकार की संभावनाओं को देखते हुए राजपूतो ने तलवार, भाले, बंदूक वगैरह जुटाने शुरू कर दिए। जो राजपूत अलवर राज के वफ़ादार थे और उसकी सबसे बड़ी ताकत थे वो ही अब अपने को उपेक्षित महसूस कर रहे थे। राजपूतो ने इस अन्याय का मुकाबला करने का फैसला किया।

 

राजस्थान का  जलियांवाला बाग नीमूचाना  :- 

आंदोलन का मुख्य केन्द्र नीमूचाना गांव था जिसके ठाकुर इस आंदोलन के मुख्य संगठन कर्ता थे। मई 1925 की शुरुआत में राजपूत बड़ी संख्या में इस गांव में जुटने शुरू हो गए। सरकार ने थानागाजी, बानसूर, मालाखेड़ा, राजगढ़, बहरोड़ थाना क्षेत्रो में हथियार लेकर घूमने पर प्रतिबंध लगा दिया। सरकार ने 7 मई को नीमूचाना गांव में वार्ता के लिए एक कमिशन भेजा जिसका असली उद्देश्य खुफिया जानकारी इकट्ठा करना था। इस कमिशन की वार्ता से कुछ हासिल नही हुआ और 6 दिन बाद 13 मई को राज्य की सेना ने गांव को चारों तरफ से घेर लिया और आंदोलन खत्म करने को कहा। 14 मई की सुबह सेना ने सारे रास्ते बंद कर बिना चेतावनी के गांव पर मशीन गन से अंधाधुन फायरिंग शुरू कर दी और उसके बाद गांव को जलाकर राख कर दिया जिसमे अलवर रियासत के सरकारी आकड़ो के अनुसार 156 किसान मारे गए और 600 से ज्यादा घायल हुए जबकि गैर सरकारी लिखित स्त्रोतों के अनुसार मरने वालों का आंकड़ा 1500 था। राजपूत किसानों के अलावा गांव की दूसरी जातियों के भी कुछ लोग गोलियों की चपेट में आकर मारे गए।
इस नरसंहार की देशभर में तीव्र प्रतिक्रिया हुई। देशभर के समाचार पत्रों में लेख लिखे गए। महात्मा गांधी ने इसे जलियावांला से भी ज्यादा विभत्स बताया और दोहरी डायरशाही की संज्ञा दी। लेकिन क्योंकि अंग्रेजी राज के परिणामस्वरूप बने नए शहरी उच्च मध्यम वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाली कांग्रेस के द्वारा राजपूतो को अस्पृश्य समझा जाता था इसलिए इस हत्याकांड की आलोचना की सिर्फ औपचारिकता निभाई गई। हालांकि राज की सरकार ने हत्याकांड के बाद अपने फैसले वापिस लिए और मृतकों के परिजनों को मुआवजे दिए गए।
यह कहा जाता है कि अलवर महाराज पर अंग्रेज सरकार का दबाव था। अंग्रेज सरकार उन्हें हटाने के बहाने ढूंढती रहती थी। और असहयोग आंदोलन के बाद अंग्रेजी सरकार ने आंदोलनों से सख्ती से निपटने का फैसला किया हुआ था। लेकिन इस सबके बावजूद इतने बड़े हत्याकांड के लिए किसी भी बहाने से अलवर दरबार को दोषमुक्त नही किया जा सकता।

नीमूचाना नरसंहार के शहीदों की अधूरी सूची-

1) आगाज सिंह, नीमूचाना
2) अजीम सिंह, थानागाजी तह.
3) बलबीर सिंह शेखावत, थानागाजी तह.
4) बस्ता, नीमूचाना
5) बेदु सिंह, बामनवास
6) ठाकुर बदन सिंह, थानागाजी तह.
7) बख्तावर सिंह, थानागाजी तह.
8) भल सिंह 'भल्ला', दरोगा, नीमूचाना
9) भंवर सिंह शेखावत, कोहरी
10) भीमा, नीमूचाना
11) ठाकुर भुर सिंह, नीमूचाना
12) बुधो, बानसूर तह.
13) चंदू, नीमूचाना
14) छाजू सिंह, बामनवास
15) छूटे, थानागाजी तह.
16) डालू सिंह शेखावत, रसनाली
17) देइया, थानागाजी तह.
18) ठाकुर देवी सिंह, थानागाजी
19) धन सिंह शेखावत, थानागाजी तह.
20) दिलेर सिंह बानसूर तह.
21) दूली सिंह शेखावत, थानागाजी तह.
22) गबदु, नीमूचाना
23) गहर सिंह शेखावत, बामनवास
24) गनिया सिंह शेखावत, बिसालु
25) घुमन सिंह, बिलाली
26) गूधा सिंह, थानागाजी तह.
27) गौरीशंकर सिंह शेखावत, नीमूचाना
28) गोरु सिंह शेखावत, गिरूड़ी
29) हनुमान सिंह, बानसूर तह.
30) हरदान सिंह, नारायणपुर
31) हरि सिंह, महानपुर
32) हरदेव सिंह शेखावत, खरखेड़ा
33) ठाकुर हेत सिंह, नीमूचाना
34) हुवा सिंह, आलमपुर
35) जबल सिंह शेखावत, घाट
36) जगत सिंह, बामनवास
37) ठाकुर जंड सिंह, नीमूचाना
38) ठाकुर जवान सिंह, नीमूचाना
39) जोध सिंह शेखावत, गिरूड़ी
40) कालीचरण सिंह, नीमूचाना
41) ठाकुर कन्हैया सिंह, थानागाजी तह.
42) खेत्र सिंह, थानागाजी तह.
43) ठाकुर किशना सिंह, थानागाजी तह.
44) ठाकुर कुशल सिंह, थानागाजी तह.
45) लाभु ,नीमूचाना
46) लाखा, नीमूचाना
47) ठाकुर लखीर सिंह, नीमूचाना
48) ठाकुर लखपत सिंह, थानागाजी
49) लाखू, थानागाजी
50) लोधा सिंह शेखावत, बिसालु
51) माधव सिंह शेखावत, नीमूचाना
52) मंगालु, बानसूर तह.
53) मागदा सिंह शेखावत, थानागाजी तह.
54) महा सिंह, बामनवास, बानसूर
55) माखन सिंह, बानसूर तह.
56) मामन सिंह, थानागाजी तह.
57) मान सिंह, बानसूर तह.
58) ठाकुर मंगल सिंह 'मंगला', बानसूर तह.
59) मंगल सिंह शेखावत, घाट
60) मनी सिंह, बानसूर तह.
61) मेमन सिंह, महानपुर, बानसूर तह.
62) नहा सिंह, बानसूर तह.
63) नंदराम सिंह, बामनवास
64) नंदू सिंह, बानसूर तह.
65) नागा, नीमूचाना
66) ठाकुर नाथा सिंह, थानागाजी तह.
67) नाथमल सिंह शेखावत, चतुरप्वा, बानसूर
68) निहाल सिंह शेखावत, गिरूड़ी
69) नौलखा, थानागाजी तह.
70) पहलाद सिंह शेखावत, आलमपुरा
71) ठाकुर पान सिंह, बानसूर
72) पन्ना सिंह, नीमूचाना
73) फूल सिंह, बिसालु
74) पिरभु सिंह शेखावत, नीमूचाना
75) ठाकुर पिरथी सिंह, थानागाजी तह.
76) रामलू, नीमूचाना
77) रामशरण, थानागाजी तह.
78) ठाकुर रतन सिंह गिरूड़ी
79) रिशाल सिंह, बामनवास
80) रुघो सिंह शेखावत, थानागाजी तह.
81) रुल्लो, बानसूर
82) ठाकुर रूप सिंह, बानसूर तह.
83) ठाकुर सादुल सिंह, गिरूड़ी
84) ठाकुर सागर सिंह, नीमूचाना
85) शिवदान, बानसूर तह.
86) शिवजी, नीमूचाना
87) शिवकरण, महानपुर
88) शिब सिंह, थानागाजी तह.
89) शूर सिंह शेखावत, नीमूचाना
90) सुखराम, थानागाजी तह.
91) ठाकुर सुरजा सिंह, थानागाजी तह.
92) सरूप सिंह शेखावत, नीमूचाना
93) तरियो, थानागाजी तह.
94) तरखा सिंह, थानागाजी तह.
95) टेक सिंह, थानागाजी तह.
96) त्रिलोक सिंह शेखावत, बिसालु
97) उदमी सिंह, बानसूर
98) उजाला सिंह, नीमूचाना
99) उमेद सिंह, बानसूर
100) उमराव सिंह शेखावत, परसकाबास
101) वजीर सिंह, आलमपुर
102) जीवन सिंह, बानसूर तह.

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