शौर्य गाथा "लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह राठौड़"



जनरल सगत सिंह राठौड़  "एक शौर्य गाथा"
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परिचय

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राजस्थान के चूरू जिले की रतनगढ़ तहसील के गांव कुसुमदेसर के निवासी सगत सिंह का जन्म 14 जुलाई 1919 को हुआ। उनके पिता ठाकुर बृजपाल सिंह ने बिकानेर की प्रसिद्ध कैमल कोर में अपनी सेवा दी थी और पहले विश्वयुद्ध में इराक में लड़े थे। उन्होंने शुरुआती पढ़ाई वॉल्टर्स नोबल स्कूल, बिकानेर से की और बाद में डुंगर कॉलेज, बिकानेर में दाखिला लिया लेकिन अपनी ग्रेजुएशन कभी पूरी नहीं की। स्कूली शिक्षा के दौरान ही इंडियन मिलेट्री एकेडमी ज्वॉइन कर ली और उसके बाद बीकानेर स्टेट फोर्स ज्वॉइन की।
दूसरे विश्व युद्ध में इन्होंने मेसोपोटामिया, सीरिया, फिलिस्तीन के युद्धों में अपने जौहर दिखाए। सन् 1947 में देश आजाद होने पर उन्होंने भारतीय सेना ज्वॉइन करने का निर्णय लिया और सन् 1949 में 3 गोरखा राइफल्स में कमीशंड ऑफिसर के तौर पर उन्हें नियुक्ति मिल गई।
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 लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह को भारत का सबसे निर्भीक सेनापति माना जाता है।  जनरल सगत तीन युद्ध जीतने वाले एकमात्र सैन्य अधिकारी हैं।  उनके नेतृत्व में, गोवा पुतले से मुक्त हो गया।  सन 1967 में चीनी सेना की हार भी जनरल सगत सिंह जी राठौड़ के नेतृत्व में दर्ज की थी।  इसके बाद, 1971 के भारत-पाक युद्ध के भीतर, जनरल सगत अपने वरिष्ठों के आदेशों को दरकिनार करते हुए ढाका चले गए।  इसने पाकिस्तानी सेना पर हथियार डालने का दबाव डाला।  हालांकि, इस व्यापक रूप से आमतौर पर उपेक्षा का सामना करना पड़ा।  यही कारण है कि उन्हें किसी भी प्रकार से वीरता सम्मान नहीं मिला।  अब भारतीय सेना अपनी शुरुआत शताब्दी मनाने के लिए जाती है।  इस अवसर पर बुधवार को जोधपुर में उनकी प्रतिमा का अनावरण किया जा सकता है।
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जनरल सगत सिंह का शानदार नेतृत्व ओर गोवा मुक्त


गोवा को पुर्तगाली कब्जे से मुक्त करने के लिए, एक ही समय में तीनों भारतीय सेना, वायु और नौसेना बलों ने एक संयुक्त अभियान चलाया।  दिसंबर 1961 में भारतीय सेना के ऑपरेशन विजय में 50 पैरा फोर्स को भी उतारने का निर्णय लिया गया इसके बाद  वे काफी  दूरी तक अंदर जाकर गोवा को इतनी जल्दी पुर्तगालियों से मुक्त करवाया की सब हतप्रभ हो देखते रह गये 18 दिसंबर को गोवा में 50 पैरा को लॉन्च किए गया था। ओर  उनकी बटालियन 19 दिसंबर को गोवा के पास पहुंची।  पूरी रात पणजी में एक शिविर रखने के बाद, उनके सैनिक तैरकर नदी पार कर शहर में दाखिल हुए।  वह एकमात्र ऐसे व्यक्ति बन गये जिन्होंने पुर्तगालियों को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया था।  पुर्तगाल के सैनिकों सहित 3306 लोगों ने आत्मसमर्पण किया।  इसके साथ ही गोवा का 451 वर्ष लंबा पुर्तगाल शासन समाप्त हो गया और वह भारत का हिस्सा बन गया।
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पुर्तगाल सरकार ने  सगत सिंह को पकड़ने पर ईनाम  घोषित किया

गोवा से आगरा लौटने पर, सगत सिंह के साथ एक घटना हुई।  सिविल ड्रेस में सगत सिंह होटल में खाना खाने गए थे।  होटल के भीतर कुछ विदेशी पर्यटक लगातार सगत सिंह की ओर देखे जा रहे थे।  कुछ समय बाद एक अमेरिकन ने करीब आकर उनसे पूछा, क्या आप ब्रिगेडियर सगत सिंह हैं?  उन्होंने कहा हाँ  मैं ही सगत सिंह हूँ और फिर कारण पूछा।  पर्यटक ने कहा कि वे पुर्तगाल से आ रहे हैं।  हमने वहां कई स्थानों पर आपके  पोस्टर लगे देखे है।जिन पर लिखा था कि  जो व्यक्ति आपको पकड़ा कर लेकर आयेगा उसे दस हजार डॉलर का इनाम दिया जाएगा।  सगत सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा, ओह, फिर मैं आपके साथ पुर्तगाल चलता हूं। ओर आपको इनाम मिल जायेगा।  इस पर, अमेरिकन ने मजाकिया लहजे में कहा कि हम पुर्तगाल नहीं जा रहे हैं हम सीधे अमेरिका जा रहे हैं।  और पुर्तगाल फिर -कभी चलेगें।
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चीनी सेना को सिर्फ तीन दिन में धूल चटा दी थी..

जनरल सगत सिंह  को चीन सीमा पर नाथू ला में तैनात  किया गया था।  नाथुला में, भारत और चीन के सैनिकों के बीच लगातार हंगामा होता रहत था।  हर दिन की झड़पों को रोकने के लिए, 11 सितंबर, 1967 को, जनरल सगत सिंह के आदेश पर, नाथू ला सेक्टर में भारतीये सेना ने  बैरिकेटिंग  शुरू की।  परन्तु चीनी सेना ने बिना किसी चेतावनी केअंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी।  भारतीय सैनिक खुले में खड़े थे । अचानक हुई इस गोलीबारी में बड़ी संख्या में भारतीय सैनिक हताहत हो गये।  इसके बाद, जनरल सगत ने तोपों को नीचे से ऊपर लाने का आदेश दिया।  उस समय सिर्फ प्रधानमंत्री के आदेश पर ही तोपों के मुह खुलते थे।  दिल्ली से कोई आदेश न मिलते देख, जनरल सगतसिंह ने दिल्ली के आदेश की प्रवाह किये बगैर दुश्मन पर तोप का मुंह खोलने का आदेश दे दिया।ओर फिर  देखते ही देखते तीन सौ चीनी सैनिक मारे गए।  इसके बाद चीनी को  पीछे हटना पड़ा।  इसको लेकर काफी हंगामा हुआ।  लेकिन चीनी सेना पर इस जीत बाद भारतीय सेना ने  12 महीने 1962 से  मिली हार को ना सिर्फ बदला ले लिया बल्कि इस मिथक को भी सदा सर्वदा के लिये तोड़ दिया कि चीनी सेना को हराया नही जा सकता।जनरल सगत सिंह द्वारा चीनी सेना को दिया वो घाव आज तक नही भरा है ।  इसकेबाद जनरल सगत सिंह को वहां से स्थानांतरित कर दिया गया।
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अपने जनरल के मना करने के बावजूद ढाका में पाकिस्तानी सेना को घेर समर्पण को मजबूर कर दिया
1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान अगरतला क्षेत्र की ओर से जनरल सगतसिंह  ने हमला किया और अपनी सेना के साथ आगे बढते रहे। मगर जनरल अरोड़ा ने उन्हें मेघना नदी को पार नहीं करने का आदेश दिया।  लेकिन उन्होंने हेलीकॉप्टरों की मदद से पूरे ब्रिगेड को चार किलोमीटर चौड़ी मेघना नदी के पार उतारा और आगे बढ़ गए।  जनरल सगत सिंह के नेतृत्व में भारतीय सेना ने ढाका को घेर लिया और जनरल नियाज़ी को आत्मसमर्पण करने का संदेश भेज दिया।  इसके बाद 93 हजार पाकिस्तानी पैदल सैनिकों का आत्मसमर्पण और बंगला देश का स्वतंत्र कर अपने आप में रिकॉर्ड बना दिया  लेकिन इसमें भी, जनरल सगत सिंह को  कोई श्रेय नहीं मिला।
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जनरल सगत सिंह ने 26 सितंबर 2001 को ली अंतिम सांस
बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण उन्हें बांग्लादेश सरकार द्वारा सम्मान दिया गया और परम विशिष्ट सेवा मेडल (पीवीएसएम) के साथ-साथ भारत सरकार द्वारा देश के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। 30 नवंबर 1976 को रिटायर हुए जनरल सगत सिंह ने अपना अंतिम समय जयपुर में बिताया। 26 सितंबर 2001 को इस महान सेनानायक का देहांत हुआ।
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