वर्चस्व की रामलीला



सामाजिक खींच तान और रस्साकशी कोई नई बात नहीं है कहते है की बार बार चोट खाने पर तो लोहा भी अपना आकार बदल लेता है फिर हाड मांस के बने हम इंसानो को अपने पुराने घावों से रिसता पीप क्यों नहीं दिखाई देता है। या तो हम जानबूझ कर अपने स्म्रति पटल पर नासमझी का पर्दा डालकर ना समझी ढोंग कर रहे है या फिर वाकहि में समाज के 52 इंच के परदे पर चल रही आपसी आतिसबाजी वाली फ़िल्म समझ में नहीं आ रही है। इतिहास को पढ़ रहे है। अपने श्रीमुख में हम सामाजिक मंचो पर बखान भी कर रहे है लेकिन जब अपने द्वारा उच्चारित शब्दों को स्वयं पर प्रतिस्थापित करने की बारी आती है  तो हम बगलें झांक कर मुख में राम बगल में छुरी वाली कहावत को चरिर्थरात कर देते है
मैं ना ही कोई विद्वान हूँ ना की कोई शास्त्रो का ज्ञाता एक आम आदमी होने के नाते जो कुछ देखता हूँ जो कुछ अनुभव करता हूँ। उससे मन में पीड़ा का भाव पैदा होता है।पीड़ा भी ऐसी की शूल की भाँति टीस मारती है रह रह कर। लेकिन इस पीड़ा को ना कोई समझ सकता ना कोई अनुभव कर सकता। हजारों सालों से पिसता आय हूँ मैं(एक आम आदमी) जिसको वाकहि फर्क पड़ता है,सामाजिक स्तर की इस रामलीला का जिसमे हर पात्र को अपने अपने  किरदार संजीदगी से निभाने की बजाय अयोध्या के उस राज सिंघासन की लालसा को पाले युद्ध रत है जिसका हक़दार सिर्फ पर सिर्फ वही है जिसमे रघुकुल की रीती रिवाज रघुकुल द्वारा स्वयं संचित संस्कारों का समावेश हो।आज देखा जाये तो लक्ष्मण राम के विरुद्ध शस्त्र उठाये खड़ा है जिसका  उद्देश्य मात्र और मात्र  राजसिंघासन तक पहुच पर अपना वर्जश्व  कायम करना ,उसे मानवमात्र या अपनी प्रजा से कोई लेना देना नहीं। बस सिर्फ और सिर्फ स्वयं को सर्वश्रेष्ठ घोषित करना एक मात्र लक्ष्य।मंत्रणा मात्र और मात्र स्वयं के उद्धघोष और जय जयकार की।रावण में जिस तरह का दम्भ की मैं ही सर्वश्रेष्ठ,उसी तरह साम दाम दण्ड भेद को अपना कर हर दरो दीवार पर स्वयं का नाम श्रेष्ठाता के साथ प्रथम पंक्ति में सम्मलित करवानी की अन्धी होड़। मंच के लिए तो ऐसा महायुद्ध  मानो जैसे की किसी जागीर की राजगद्दी के लिए
लड़ाई। लेकिन इस सब के बीच मुझ जैसा एक आम आदमी जो कहीं पर इस आस के साथ 5 रुपये  खर्च करके इस रामलीला के मंचन में पधारता है की शायद मेरे लिए कुछ हो लेकिन हर बार ठगा सा महसुस कर निराश कदमों से घर वापस लौट जाता हूँ। क्यों की आज कल रामलीला का मंचन राम और रावण के युद्ध का नहीं बल्कि राम और लक्ष्मण के श्रेष्ठाता का किया जाता है जिसमे हार सिर्फ और सिर्फ मेरी ही है।
#अफ़सोस


उपरोक्त चित्र सिर्फ प्रतीकात्मक स्वरूप हेतु प्रस्तुत किया गया है।

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