The great rajputana worrier आमेर नरेश पज्जवन राय

राजा जान्हाड्देव के बाद उनके वीर पुत्र पज्ज्वनराय आमेर के राजा बने !१३वि सदी में होने वाले कछवाह राजाओं में वे सबसे महत्वपूर्ण थे !वे महान योधा,दक्ष सेन्ये संचालक,अनेक युधों के विजेता व सम्राट प्रथ्विराज के सम्मानिये सम्बन्धी व सेनापति थे !संयोगिता हरण के समय प्रथ्विराज का पीछा करती हुयी गहड्वालों की विशाल सेना रोकते हुए कन्नोज के युद्ध में उन्होने वीर गति प्राप्त की !पज्ज्वनराय के युद्ध में वीरगति प्राप्त होने पर शोक विहल होकर सम्राट प्रथ्विराज ने कहा था कि आज दिल्ली विधवा हो गयी है !कवी चंदबरदाई ने प्रथ्विराज रासो में प्रथ्विराज द्वारा प्रकट शोक उदगार इन शब्दों में अंकित किया है !
आज राण्ड ढिलड़ी,आज ढुँढाड़ अनाथई
आज अदिन प्रथ्विराज,आज सावंत बिन मथाई!
आज पर दल दल जोर,आज निज दल भ्रम भग्गे
आज मही बिन कसम,आज मुरजाद उलंगे !
हिंदवाण आज टुटी ढिली,अब तुरकाणी उच्टीय
कूरमं पजून मरतां थकां,मनहुं चाप गुण तुटीय !!
पज्ज्वनराय के मौत पर दिल्ली विधवा सी प्रतीत हो रही है ढुंढाड़ प्रदेश अनाथ हो गया है !प्रथ्विराज के लिए आज बुरे दिन का उदय हुवा है शत्रु सेना में उत्साह व अपनी सेना में निराशा फ़ैल गई है ! सामंतों का शुर शिरोमणि आज नहीं रहा !पज्ज्वनराय के किर्तिशेष हो जाने से प्रथ्वी अनाथ हो गई व न्याय व्यवस्था भंग हो गई है !
दिल्ली कि सर्वोच्च हिदू शक्ति समाप्त हो गई है तुर्कों का प्रवाह रोकने वाला अब कोई नहीं रहा !आज कछ्वाह पज्ज्वनराय के मरते ही प्रथ्विराज के बाण कि प्रत्न्यांचा ही टूट गई है !
प्रथ्विराज के उपरोक्त उदगार पढने से आमेर नरेश पज्ज्वनराय जी कि वीरता बारे में सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है !वे प्रथ्वी राज के प्रबल समर्थक सामंत,प्रथिवराज के दाहिने हाथ
व दिल्ली कि सुरक्षा के लिए ढाल थे जब तक वे जीवित रहे प्रथ्विराज को युध में हारने नहीं दिया !पज्ज्वनराय जी ने अपनी उम्र में छोटे बड़े ६४ युधों में भाग लिया !
सम्राट प्रथ्विराज का कोई ऐसा प्रशिध युद्ध नहीं था जिसमे पज्जवनराय अथवा उनके भाई बेटों का रक्त न बहा हो !प्रथ्विराज की ऐसी कोई विजय नहीं थी जिसमे कछवाहों की तलवार ने जौहर न दिखाया हो !और अंत में राजा पज्ज्वनराय जी ने दिल्ली के सम्राट प्रथ्विराज चौहान के समर्थन में ही युद्ध भूमि में वीरता, साहस व शोर्ये के साथ लड़ते हुए एक वीर राजपूत की तरह क्षात्र धर्म का पालन करते वीर गति को प्राप्त हुए !

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ