जननायक रामप्रसाद सिंह तोमर "बिस्मिल"को सत सत नमन।।
बिस्मिल"
याद तेरी फिर आयी बिस्मिल,
कुन्द अब पड़ी लिखाई है।
पीर परायी रंग बसन्ती,
लगने लगी पराई है!
रो रही तेरी कुर्बानी ओर,रो रही तेरी लिखाई है
वतनपरस्ती नही दिलों में,तख्त बना हरजाई है।
आजादी और कुर्बानी पर,लगने लगी स्याही है
पीर परायी रंग बसन्ती.............................(१)
सरफ़रोशी ओर तमन्ना ,भूल गयी अँगड़ाई है
तख्तोताज आगे अब तो,ठंडी पड़ी लड़ाई है!
आजादी पर लग गये पहरे,अजब सी हुकुम बजाई है।
पीर परायी रंग बसन्ती.............................(२)
ना अब जोश ए जुनू है कोई,न मस्तो की टोली है
शब्दों मे अब जान कहाँ,कहाँ इंकलाब की बोली है!
रंग बसन्ती फीका पड़ गया,फीकी पड़ी रंगाई है
पीर परायी रंग बसन्ती.............................(३)
ना जाने क्या हुआ हिन्द को,किसने नज़र लगाई है
पीर परायी रंग बसन्ती, लगने लगी पराई है!
हिंदवाणी तो भूली सबने,अंग्रेजी अपनाई है
पीर परायी रंग बसन्ती.............................(४)
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कुँवर नरपतसिंह पिपराली
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